तुम दो स्पंदन मेरी कलम को शब्दों को दो प्राण प्रेम की मंद मघुर लय दो
कर पाऊं कुछ मेरी रचना जीवन हो साकार ज्ञान का ऐसा एक वर दो
तुम दो स्पंदन मेरी कलम को शब्दों को दो प्राण प्रेम की मंद मधुर लय दो
कुसुम सुमन से जो कुछ पाया कंटको ने छिना सारा
रचना व्यर्थ ना जाय तिहारी जन्म सफल कर दो
तुम दो स्पंदन मेरी कलम को शब्दों को दो प्राण प्रेम की मंद मधुर लय दो
मैं तो रहना चाहूँ ऐसे मुक्त रहे जल धारा जैसे
दिख जाय प्रतिबिम्ब स्वयं का निर्मल मन कर दो
तुम दो स्पंदन मेरी कलम को शब्दों को दो प्राण प्रेम की मंद मघुर लय दो
घोर निराशाओ ने घेरी मेरी मंजुल अभिलाषाएं
आशाओं के नभ में मुझ को दिनकर तुम कर दो
तुम दो स्पंदन मेरी कलम को शब्दों को दो प्राण प्रेम की मंद मघुर लय दो
कर पाऊं कुछ ऐसी रचना जीवन हो साकार ज्ञान का ऐसा एक वर दो
तुम दो ..