Thursday, September 4, 2008

तुम आओ तो.

ताल के पानी की तरह

ठहरी थमी सी ज़िन्दगी

कुछ लहरों की आरजुओं में कंकर तलाशती है

तुम आओ कभी खामोश साहिल पर

अपनी तनहाइयों की मुठी भर-भर

मारो मुझ में कंकर पत्थर

एक लहर बिछा दो सीने पर

मार के अपनी एड़ी

कुछ बूँद सजा दो माथे पर

झिड़क के अपनी पायल को

शोर मचा दो साहिल पर

तुम आओ तो कभी

इन सुनसान किनारों पर

ठहरी थमी सी ज़िन्दगी की

रगड़ के अपने पैरों से

पीठ खुजा दो ..बस

तुम आओ तो कभी .........

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