तारीख़ बदलती
फटता कैलेंडर
दिन,महीना,साल चढ़ आता
फिर एक रोज़
खूंटी में टंक जाता एक नया कैलेंडर
ज़िंदगी बदलती सिर्फ कैलेंडरों में यहाँ
ऐसे क्यों नही बदलती
जैसे मैं बदलना चाहता हूँ
जैसे तुम बदलना चाहती हो
फिर मैं महज़ कैलेंडर बदलने को बेसब्र
उस दिन का इंतज़ार नही करता
जिसे कहती हो तुम.... नया साल !
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