जब से गए हो तुम
अपनी मुट्ठी मैं दबाये सारे रंग
अँधेरा पसर गया है
घर, ऑगन, दीवारों पर
और रौशनी पिछवाड़े के जंगल मैं
किसी साख पे सिमटी सहमी सी बैठी है
जब से गए हो तुम
सब कुछ है अपनी जगह बराबर
चांद ,सूरज ,कोहसार ,जंगल
मेरी dairy और पेन
बस ज़िंदगी ये रुठी सी बैठी है
जब से जाये हो तुम .........
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