Monday, November 19, 2007

एक़ प्याली चाय की

एक़ प्याली चाय की
जिसमें तेरी उंगलिया घुली हो
जो तेरे लब से शीरी हुई हो
जिस पर तेरा अक्स हिल रहा हो
मेरे नसीब मैं कहाँ

तेरी अंगड़ाइया सुबह के बिस्तर पर
उनीदी रातों कि उबासिया, तेरी आहें ,तेरी साँसों के आहंग
थकन से चूर तेरा बदन

मेरे नसीब में कहाँ

एक प्याली चाय की
जिस में तेरी उंगलिया घुली हो
जो तेरे लब से शीरी हुई हो
जिस पर तेरा अक्स हिल रहा हो
मेरे नसीब मैं कहाँ


तेरी जुल्फ का बाल कही मेरी कमीज़ में मिले
गुम होके तेरी बिंदिया कभी मेरे रुखसार में खिले
तेरी पायल को भी मुझ से ऐतराज हो

मेरे नसीब में कहाँ

एक प्याली चाय कि
जिस में तेरी उंगलिया घुली हो
जो तेरे लब शीरी हुई हो
जिस पर तेरा अक्स हिल रहा हो
मेरे नसीब मैं कहाँ ।

2 comments:

हरिमोहन सिंह said...

वाह भई वाह

पारुल "पुखराज" said...

beautiful...aaj palat kar apni puraani post dekhi to aapkey comment yahan tak kheench laaye mujhey...aakar acha laga....nazm ji...nahi sirf NAZM...SAHI HAI NA?

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