Thursday, November 22, 2007

मफलर

जैसे तूने अपनी दो गर्म रेशमी बाहें दे दी हो मुझको
सर्दी के मौसम में
ये मफलर
झूलता रहता है कांधों पर।
लिपट लेता हूँ जब इसको गरदन पर
सीने तक तेरी छुअन का एहसास रहता है ।


सिर पर पूरा घुमा लेता हूँ
फिर जब ठंड से कान ऐठने लगते हैं

.........और कभी जब सर्दी बड़ जाती है ना !
चूने लगती है नांक मेरी
नांक इसी में रगड़ लेता हूँ
ये समझते हुए कि तेरी ये बाहें
जैसे मेरी अपनी ही तो बाहें हैं ।


1 comment:

Anonymous said...
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