जैसे तूने अपनी दो गर्म रेशमी बाहें दे दी हो मुझको
सर्दी के मौसम में
ये मफलर
झूलता रहता है कांधों पर।
लिपट लेता हूँ जब इसको गरदन पर
सीने तक तेरी छुअन का एहसास रहता है ।
सिर पर पूरा घुमा लेता हूँ
फिर जब ठंड से कान ऐठने लगते हैं
.........और कभी जब सर्दी बड़ जाती है ना !
चूने लगती है नांक मेरी
नांक इसी में रगड़ लेता हूँ
ये समझते हुए कि तेरी ये बाहें
जैसे मेरी अपनी ही तो बाहें हैं ।
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